मत्तग्यन्द सवैया
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चाँद समान लगे मुखड़ा,तन रंग लगे समझो वह सोना
रूप लिये वह रूपवती,कर डारि गयी हमपे फिर टोना
स्वप्न बुने हमने बहुतै,हर स्वप्न लगे तब मित्र सलोना
बाद नही अब टेम उसे,यह प्यार रहा बन एक खिलौना
रूप लिये वह रूपवती,कर डारि गयी हमपे फिर टोना
स्वप्न बुने हमने बहुतै,हर स्वप्न लगे तब मित्र सलोना
बाद नही अब टेम उसे,यह प्यार रहा बन एक खिलौना
(2)
प्रेम बढो पुरजोर हुओ मन,मोहन के बिन चैन न आवे
भूख लगे नहि प्यास लगे अब,दर्श बिना कछु मोय न भावे
राह निहारत बीत गयो दिन,रात वही फिर याद सतावे
रोय रही वृषभानु लली सुन,साँवरिया कितनो तड़पावे
नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
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Naveen Shrotriya Ütkarsh" |
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