अलंकार : Alankar
अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम् + कार, अलम का अर्थ होता है 'आभूषण' जिस प्रकार नारी सौंदर्य को बढाने के लिए आभूषण प्रयुक्त होते है ठीक वैसे ही काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का प्रयोग होता है | कवि दंडी के लिए अलंकार काव्य के शोभाकर धर्म हैं :- "काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते" "काव्य की शोभा बढानें वाले धर्मों को अलंकार कहते हैं " अलंकार के संबंध में आचार्यों के अपने अपने मत है। कवि केशवदास ने दोहा छंद के माध्यम से अलंकारों के विषय में कहा है, कि-
जदपि सुजाति सुलक्षणी, सुबरन सरस सुवृत्त |
भूषण बिनु न बिराजई, कविता, बनिता, मित्र ||
प्रश्न है की काव्य की शोभा कैसे बढ़ती है ?
काव्य की शोभा वाक्य में शब्दों के प्रयोग से,अर्थों के प्रयोग से एवं दोनों के प्रयोग से बढ़ती है। शब्दों के द्वारा काव्य को कैसे अलंकृत करें अथवा अर्थ द्वारा काव्य को कैसे अलंकृत करें ?
काव्य की शोभा बढ़ने के लिए दो अवयवों की मुख्य रूप से भूमिका रहती है अथवा आवश्यकता रहती है।
वह निम्न है :-
१. कला पक्ष
२. भाव पक्ष
अद्यतन दिनांक 16. 6. 2019
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