छंद : कुण्डलिया
Kundaliyan Chhand
(1)
अज्ञानी तेरे बिना, ज्यो जल बिन हो मीन
कृपा करो माँ शारदे, विनती करे नवीन
विनती करे नवीन, सूझ कब तुम बिन माता
दो मेधा का दान, मात मेधा की दाता
जग करता गुणगान, मात तुम आदि भवानी
मिले तुम्हारा साथ, चाहता यह अज्ञानी
(2)
(2)
भोले शंकर देव का, जो करते है जाप
भव बंधन उसके कटे, मिट जाते सब पाप
मिट जाते सब पाप, धन्य जीवन हो जायें
वैभव यश बल तेज, साथ समृध्दि पाये
कहे भक्त उत्कर्ष, लगे नहि कांटे कंकर
रखते सबका ध्यान, देवता भोले शंकर
माँ धरती का लाल वो, रहता सुख के पार
रहता सुख के पार, करे वह सबको पोषित
दबा कर्ज में मूँड़, किया सबने ही शोषित
सुनो सबल उत्कर्ष, गले पर चलती रेती
खुद से ले संकल्प, करे वह फिर भी खेती
(4)
(3)
खेती पर निर्भर रहे, जिसका सब परिवारमाँ धरती का लाल वो, रहता सुख के पार
रहता सुख के पार, करे वह सबको पोषित
दबा कर्ज में मूँड़, किया सबने ही शोषित
सुनो सबल उत्कर्ष, गले पर चलती रेती
खुद से ले संकल्प, करे वह फिर भी खेती
(4)
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
Kundaliyan Ka udaharan |
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