भोर भयी दिनकर चढ़ आया ।
दूर हुआ तम का अब साया ।।
कर्मवीर तुम अब तो जागो ।
लक्ष्य साध यह आलस त्यागो ।।
हार जीत सब कर्म दिलाता ।
ध्यान धरे वह मंजिल पाता ।।
हार कभी न कर्म पर भारी ।
यह सब कहते नर अरु नारी ।।
कर्म बड़ा है भाग्य से,लेना इतना जान ।
कर्म दिलाता जीत को,कर्म बने पहचान ।।
कर्म करो फल चिंता छोडो ।
कर्म धर्म का रिश्ता जोड़ो ।।
कर्म करो किस्मत सँवरेगी ।
मन चाही फिर गति मिलेगी ।।
करना क्या ये मन में ठानो ।
कर्मो का फल निश्चित जानो ।।
स्वर्ग नहुष को कर्म दिलाया ।
कर्म मार्ग तुलसी प्रभु पाया ।।
लेकर कुछ उद्देश्य हम,आये इस संसार ।
पूरा करना है अगर,लेना कर्म संवार ।।
सत संयम से सब कुछ पाओ ।
बुरे मार्ग को मत अपनाओ ।।
लोभ द्वेष जिसके मन होता ।
वह अपना सब कुछ है खोता ।।
मार्ग मिले नहिं मंजिल पाता ।
उद्देश्य रहित जीवन हो जाता ।।
मोह जाल में कभी न पड़ना ।
सोच समझ कर आगे बढ़ना ।।
मोह जाल चहुँ ओर है,बचकर चलना आप ।
जो फँसता इस जाल मे,पाता वह संताप ।।
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
+91 84 4008-4006
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