छन्द : कुंडलिनी
विरह सतावे पीव जी,लगी मिलन की प्यास |
कद आओगे थे लिखो,बीत रहा मधुमास ||
बीत रहा मधुमास,चैन तुम बिन नहि आवे |
तडपू पल छिन पीव,घणी ये विरह सतावे ||
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
विरह सतावे पीव जी,लगी मिलन की प्यास |
कद आओगे थे लिखो,बीत रहा मधुमास ||
बीत रहा मधुमास,चैन तुम बिन नहि आवे |
तडपू पल छिन पीव,घणी ये विरह सतावे ||
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।