लिए कंचन सी' काया वो,उतर आई नजारों में
करें  वो बात  बिन बोले,अकेले  में  इशारो में
बिना देखे कही पर भी,मिले ना चैन अब मुझको,
गगन के चाँद जैसी वो,हसीं लगती हजारों मे
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सभी करते मो'हब्बत पर,झलकता प्रेम ये कैसा
मो'हब्बत प्रीत है दिल की,रखो इसको सदा वैसा
करो गन्दा इसको तुम,जमाने  की  निगाहों में
मो'हब्बत राह है ऐसी,जहाँ नहि काम का पैसा
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सुधर  जाओ  दरिन्दों तुम,अगर  जो जान है प्यारी
नही सुधरे जो' जल्दी तुम,करो  ऊपर  की  तैयारी
अगर जो ठान ले हम फिर,बचा   कोई   पायेगा
कहो तो हम अभी करदें,तुम्हारा अब  टिकट  जारी
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चला  चल  चाँद के पीछे दिलो  में प्रीत  फिर होगी
निशा  आई  उजाले भर अमन की जीत फिर होगी
जमाना क्या कहेगा सोचकरमत हार  तुम   जाना
दिलो को जीत  लेने  की नई  सी  रीत फिर होगी
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करो सब ही पढ़ाई तुम,उजाला  ज्ञान  से कर दो
बहुत  गहरा अँधेरा  है,इसे  दीपक  जला हर दो
पसारो  ज्ञान  को  भाई,बहिन  बेटी  वतन  में तुम
जमाने से मिटा नफरत,दिलो  में  प्रेम  को  भर दो
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🏽नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"