मुक्तक माला
प्रेम करो तज मोह,नही मन का यह गहना ।
निर्मल पावन प्रेम,गुणीजन का यह कहना ।
प्रेम बचे बस एक,नहीजग में कुछ रहता ।
छोड़ यही यह दंभ,मिलो सबसे मन कहता ।
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प्रेम को मन में तुम जगह दीजिये,
नफरत को न अब तुम हवा दीजिये ।
मुश्किल से है मिलता इंसा का जन्म,
इस जन्म को न तुम यु गवाँ दीजिये ।।
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सभी करते मो'हब्बत पर,झलकता प्रेम ये कैसा ।
मो'हब्बत प्रीत है दिल की,रखो इसको सदा वैसा ।
करो गन्दा न इसको तुम,जमाने की निगाहों में ।
मोहब्बत है सदा पावन,नही दूजा मिले ऐसा ।
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बढ़ी फिर भूख लोगो की,चले सब छोड़ के रास्ता ।
मिले मत माल अच्छा पर,मिले सबको यहां सस्ता ।
गये क्यों भूल खुद को ही,चले आये कहाँ हम सब ।
कड़क मांगे नही कोई,मिले जब माल ये खस्ता ।
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प्रीत पावन है सदा ही मीत रे ।
हार मेरी है यही अब जीत रे ।
जां लुटा दूंगा इसी संसार में ।
हो सवेरा नव जहां ये रीत रे ।
✍🏽नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
1 Comments
Well said
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