मेहनत का फल : Result Of Exertion
गरीब ! कहने को तो सबहि होते है,पर मन से हार मान लेने वाला ही गरीब होता है,अगर मनुष्य की मन इच्छा सशक्त है,तो वह अपना भविष्य खुद सुनिश्चित कर सकता है,वह जो चाहेगा वही पावेगा ।
रामू बड़ा ही मेहनती था,निम्न वर्गीय परिवार मे जन्म होने के बावजूद उसने गरीबी को कभी अपनी कमजोरी नही बनने दिया ।
शरीर से दुबला पतला,गोल मटोल चेहरा,अंदर तक धंसी हुई आंखे,मोटे मोटे होठ,आँखों मे उम्मीद का दिया साफ़ दिखाई देता था,जैसे वो जन्म से कुछ करने का संकल्प ले चुका हो ।
मुर्गे की बांग के साथ ही प्रातः चार बजे बिस्तर छोड़ देता, और अपने घरेलू कामकाज जल्दी ही निपटा लेता, उसके बाद वह काम करने खेतो पर चला जाता ।
उसको 1 बीघा भूमि जो पैतृक संपत्ति के रूप मे मिली थी,उसने उसे परमात्मा का उपहार समझ सहर्ष स्वीकार कर लिया , पर यहाँ भी उसकी बदनसीबी साफ़ नज़र आ रही थी ।
पानी की कमी के कारण उसकी वह भूमि बंजर हो गयी ।
दिन उगने के साथ ही वह काम करने निकल जाता और दिन छिपने के साथ ही घर वापसी करता था । यह उसकी दिनचर्या बन चूका था । गांव के लोग उसकी माली हालत देखकर,उससे अपने खेतों मे काम कराया करते थे ।
उसने अपनी मेहनत से सभी का दिल जीता हुआ था ।
जब भी उसे समय मिलता वह बंजर भूमि मे काम करता था।
और इसी मेहनत से उसकी रोटी रोजी का इंतज़ाम हो जाता साथ ही कुछ पैसे भविष्य की जरूरतों के लिए भी बच जाते थे । कहते है
जब आदमी मेहनत से कमाता है तो वह उसे सोच समझ कर खर्च करता है । बेफ़िजूली
खर्च आर्थिक संकट की जनक होती है ।
और वह इस बात को अच्छी तरह जानता था । नित प्रतिदिन बंजर की खुपरैल मिटटी को उसकी गुड़ाई ने नरम कर दिया,पर अभी वह उपजाऊ नही हो पाई थी,बारिश के दिनों में उस बंजर पर घास फूंस जो स्वतः उग आती थी को चरने गाँव की आवारा मवेसी,व चरवाहे अपनी मवेसी को चराने ले आते थे,इससे उनका मल मूत्र भी उसी बंजर में धूमिल होता रहा । जो उस बंजर भूमि को खाद के रूप मे अंदरूनी तरीके से काम करता रहा ।
कई बरस बाद उसकी मेहनत लग्न से उस बंजर भूमि मे बाजरे के कुछ पेड़ नजर आये ।
अब उसकी उम्मीद बढ़ चुकी थी ।
धीरे धीरे समय ढलता गया,उम्र के साथ शरीर की शक्ति क्षीण होने लगी । परंतु वह पहले की अपेक्षा आर्थिक रूप से ठीक हो गया,उसने बचत के रूप में 5000 रुपया एकत्रित कर लिया,जो उस समय एक माध्यम वर्गीय परिवार के पास होती थी ।
शारीरिक दुर्बलता भी उसके
आत्मबल पर अपना प्रभुत्व स्थापित नही कर पाई ।
चूंकि वह शरीर से कमजोर था पर मन अभी भी उसका ज्यो का त्यों था,मेहनतकश इंसान कभी भी मन से नही हारता,जो मन से हार गया वह मेहनती नही हो सकता,आत्मबल जीत का पहला पायदान होता है ।
जो हमें हमारे कर्त्तव्य पथ से विमुख नही होने देता और साथ ही साथ हमे प्रेरित करता रहता है । वह अब भी ठीक पूर्व की तरह ही मेहनत करता था ।
बरसा ऋतू आई,सभी लोग अपने खेतो की जुताई बुबाई जोर शोर से करने लगे ।
वर्षा ऋतु में जल की पर्याप्त मात्रा में आवक होने से उसे सिचाई की चिंता से मुक्ति मिल गयी । इस बार उसने भी अपनी किश्मत और मेहनत को आजमाने की सोची, और उसने अपनी जमा पूंजी मे से कुछ रूपये का बीज व खाद लिया,और उसने बंजर भूमि मे डाल दिया ।
तत्पश्चात वह अपने खेत पर अधिक समय व्यतीत करता ।
बुबाई के करीब 10 दिन तक उसे निराशा हाथ लगी, वह इस बार खुद को कोसने लगा,उसे लगा की कही न कही उसकी मेहनत में कमी है , परंतु उसने अभी भी खेत पर काम करना जारी रखा,
और एक रोज सुबह चमत्कार हुआ, उसे खेत में नन्हे नन्हे पौधे नजर आने लगे,उसे खुद पर यकीन नही हुआ उसे लगा की जैसे वह कोई स्वप्न देख रहा है । उसने कई बार अपनी आँखों को मींड कर देखा और उसे ज्ञात हुआ की यह सब सत्य है । अब उसकी मेहनत दिन प्रतिदिन बढ़ती गई,बाजरे के पौधे अपना आकार लेने लगे । सारे गांव भर में उसके चर्चे होने लगे । उम्र का आखिरी पड़ाव ,बुढ़ापा होने के बाबजूद उसका जोश दिन दोगुना हो रहा था । समय समय पर खेत की निराई गुड़ाई करता रहा ।
खेत में फसल लहरा उठी,किस्मत की बयार उसके अनकूल बहने लगी । देखते ही देखते फसल अपना अंतिम रूप लेने लगी, उसके बाजरे की बाली अन्य की तुलना में बड़ी व मोटाई लिये हुए थी ।
वह अपनी मेहनत के फल को देख कर प्रसन्न था ।
सब लोग उससे इस चमत्कार के विषय में पूछने लगे,वह धीमे से मुस्काया,और लोगो की ओर देखने लगा,उसके होठ कुछ बुदबुदाये,यह कोई चमत्कार नही मेहनत का फल है । और "मेहनत इंसान की दूसरी भाग्य विधाता है" । हां,सच ही कहा उसने मेहनत से क्या कुछ हासिल नही किया जा सकता ।
सबकुछ हमारी मेहनत के ऊपर निर्भर है ।
और विधाता मेहनत का फल कभी बाकी नही रखता बशर्ते मेहनत लग्न लेकर हो ।
रामू बड़ा ही मेहनती था,निम्न वर्गीय परिवार मे जन्म होने के बावजूद उसने गरीबी को कभी अपनी कमजोरी नही बनने दिया ।
शरीर से दुबला पतला,गोल मटोल चेहरा,अंदर तक धंसी हुई आंखे,मोटे मोटे होठ,आँखों मे उम्मीद का दिया साफ़ दिखाई देता था,जैसे वो जन्म से कुछ करने का संकल्प ले चुका हो ।
मुर्गे की बांग के साथ ही प्रातः चार बजे बिस्तर छोड़ देता, और अपने घरेलू कामकाज जल्दी ही निपटा लेता, उसके बाद वह काम करने खेतो पर चला जाता ।
उसको 1 बीघा भूमि जो पैतृक संपत्ति के रूप मे मिली थी,उसने उसे परमात्मा का उपहार समझ सहर्ष स्वीकार कर लिया , पर यहाँ भी उसकी बदनसीबी साफ़ नज़र आ रही थी ।
पानी की कमी के कारण उसकी वह भूमि बंजर हो गयी ।
दिन उगने के साथ ही वह काम करने निकल जाता और दिन छिपने के साथ ही घर वापसी करता था । यह उसकी दिनचर्या बन चूका था । गांव के लोग उसकी माली हालत देखकर,उससे अपने खेतों मे काम कराया करते थे ।
उसने अपनी मेहनत से सभी का दिल जीता हुआ था ।
जब भी उसे समय मिलता वह बंजर भूमि मे काम करता था।
और इसी मेहनत से उसकी रोटी रोजी का इंतज़ाम हो जाता साथ ही कुछ पैसे भविष्य की जरूरतों के लिए भी बच जाते थे । कहते है
जब आदमी मेहनत से कमाता है तो वह उसे सोच समझ कर खर्च करता है । बेफ़िजूली
खर्च आर्थिक संकट की जनक होती है ।
और वह इस बात को अच्छी तरह जानता था । नित प्रतिदिन बंजर की खुपरैल मिटटी को उसकी गुड़ाई ने नरम कर दिया,पर अभी वह उपजाऊ नही हो पाई थी,बारिश के दिनों में उस बंजर पर घास फूंस जो स्वतः उग आती थी को चरने गाँव की आवारा मवेसी,व चरवाहे अपनी मवेसी को चराने ले आते थे,इससे उनका मल मूत्र भी उसी बंजर में धूमिल होता रहा । जो उस बंजर भूमि को खाद के रूप मे अंदरूनी तरीके से काम करता रहा ।
कई बरस बाद उसकी मेहनत लग्न से उस बंजर भूमि मे बाजरे के कुछ पेड़ नजर आये ।
अब उसकी उम्मीद बढ़ चुकी थी ।
धीरे धीरे समय ढलता गया,उम्र के साथ शरीर की शक्ति क्षीण होने लगी । परंतु वह पहले की अपेक्षा आर्थिक रूप से ठीक हो गया,उसने बचत के रूप में 5000 रुपया एकत्रित कर लिया,जो उस समय एक माध्यम वर्गीय परिवार के पास होती थी ।
शारीरिक दुर्बलता भी उसके
आत्मबल पर अपना प्रभुत्व स्थापित नही कर पाई ।
चूंकि वह शरीर से कमजोर था पर मन अभी भी उसका ज्यो का त्यों था,मेहनतकश इंसान कभी भी मन से नही हारता,जो मन से हार गया वह मेहनती नही हो सकता,आत्मबल जीत का पहला पायदान होता है ।
जो हमें हमारे कर्त्तव्य पथ से विमुख नही होने देता और साथ ही साथ हमे प्रेरित करता रहता है । वह अब भी ठीक पूर्व की तरह ही मेहनत करता था ।
बरसा ऋतू आई,सभी लोग अपने खेतो की जुताई बुबाई जोर शोर से करने लगे ।
वर्षा ऋतु में जल की पर्याप्त मात्रा में आवक होने से उसे सिचाई की चिंता से मुक्ति मिल गयी । इस बार उसने भी अपनी किश्मत और मेहनत को आजमाने की सोची, और उसने अपनी जमा पूंजी मे से कुछ रूपये का बीज व खाद लिया,और उसने बंजर भूमि मे डाल दिया ।
तत्पश्चात वह अपने खेत पर अधिक समय व्यतीत करता ।
बुबाई के करीब 10 दिन तक उसे निराशा हाथ लगी, वह इस बार खुद को कोसने लगा,उसे लगा की कही न कही उसकी मेहनत में कमी है , परंतु उसने अभी भी खेत पर काम करना जारी रखा,
और एक रोज सुबह चमत्कार हुआ, उसे खेत में नन्हे नन्हे पौधे नजर आने लगे,उसे खुद पर यकीन नही हुआ उसे लगा की जैसे वह कोई स्वप्न देख रहा है । उसने कई बार अपनी आँखों को मींड कर देखा और उसे ज्ञात हुआ की यह सब सत्य है । अब उसकी मेहनत दिन प्रतिदिन बढ़ती गई,बाजरे के पौधे अपना आकार लेने लगे । सारे गांव भर में उसके चर्चे होने लगे । उम्र का आखिरी पड़ाव ,बुढ़ापा होने के बाबजूद उसका जोश दिन दोगुना हो रहा था । समय समय पर खेत की निराई गुड़ाई करता रहा ।
खेत में फसल लहरा उठी,किस्मत की बयार उसके अनकूल बहने लगी । देखते ही देखते फसल अपना अंतिम रूप लेने लगी, उसके बाजरे की बाली अन्य की तुलना में बड़ी व मोटाई लिये हुए थी ।
वह अपनी मेहनत के फल को देख कर प्रसन्न था ।
सब लोग उससे इस चमत्कार के विषय में पूछने लगे,वह धीमे से मुस्काया,और लोगो की ओर देखने लगा,उसके होठ कुछ बुदबुदाये,यह कोई चमत्कार नही मेहनत का फल है । और "मेहनत इंसान की दूसरी भाग्य विधाता है" । हां,सच ही कहा उसने मेहनत से क्या कुछ हासिल नही किया जा सकता ।
सबकुछ हमारी मेहनत के ऊपर निर्भर है ।
और विधाता मेहनत का फल कभी बाकी नही रखता बशर्ते मेहनत लग्न लेकर हो ।
✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
श्रोत्रिय निवास,भगवती कॉलोनी
बयाना (भरतपुर) राजस्थान-321401
संपर्क : +9184 4008-4006
श्रोत्रिय निवास,भगवती कॉलोनी
बयाना (भरतपुर) राजस्थान-321401
संपर्क : +9184 4008-4006
मेहनत का फल |
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।