===== उत्कर्ष कृत दोहे ====
गजमुख की कर वंदना,धर शारद का ध्यान ।
पञ्च देव सुमिरन करूँ,रखो कलम का मान ।।
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ईश्वर के आशीष से,दूने हो दिन रात ।
बिन मांगे सबको मिले,मेरी यही सौगात ।।
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अधर गुलाबी मधु भरे,तिरछे नैन कटार ।
मुख गोरी का चाँद सम,उतरा हिय के पार ।।
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इक दूजे को थाम कर,बढे चलो सब यार ।
मिलजुल कर विस्तृत करो,हिन्द काव्य परिवार ।।
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बिछड़ गये जब से सजन,पीर बनी मन रोग |
तन्हा बिन तेरे हुआ,कैसा यह संयोग ||
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धड़क रहा है जीयरा,तडप बनी है पीर |
किधर गये तुम रांझना,व्याकुल तुम बिन हीर ||
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धड़कन पर तुम ध्यान दो,समझ इसे गंभीर |
कलम उठा कर सब लिखो,खटक रही जो पीर ||
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मनमोहक दो कुँवर है,जिनका रूप अनूप |
ओज झलकता दूर से,मानो वो हों भूप ||
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धक-धक धड़कन है चले,धड़क रहा मन जीव |
देखा जबसे नैन भर,मान लिया है पीव ||
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मान, प्रेम जिस घर रहे,वहां ईश का वास ।
मिलजुल कर सब जन रहो,पूरी होगी आस ।।
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सच को कभी न त्यागिये,सच है पुण्य समान ।
झूठ बोलकर छल रहे,खुद को क्यों जजमान ।।
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इक दूजे से सीखकर,पाते सब ही ज्ञान |
पूरण कोई है नही,फिर क्यों ये अभिमान ||
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बात कहूँ में लाख की,धर थोड़ा सा ध्यान |
ज्ञान मिले जित भी तुझे,ले तू तज अभिमान ||
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माना है दूरी मगर,समझो कभी न दूर |
दिल में तुम हरदम रहे,लेकर प्यार हजूर ||
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खेल-खेल में खेलकर,खेल गये वो खेल |
हम खेले जब खेल को,हमे न पाए झेल ||
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साँझ सवेरे जोहती,साजन थारी बाट |
कद आओगे थे लिखो,मनवा भरे उचाट ||
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टेढ़ा मेडा पथ नही,बढ़े चलो तुम यार ।
मिट जाएगा सब यहाँ,बाकी बस यह प्यार ।।
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नारी के उत्थान को,करना जतन नवीन ।
रहे न कोई फिर यहाँ,नारी अबला दीन ।।
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पढ़ लिखकर आगे बढ़ो,करो जगत में नाम ।
दृढ़ निश्चय संकल्प ले,लगे रहो अविराम ।।
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नारी संयम नाम है, बुध्दि कुशल अनुरूप ।
समय देख धारण करो,नारी नूतन रूप ।।
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हार कभी मत मानना,बाधाएं हों लाख ।
लग्न लगा कर कर्म से,कर देना तू ख़ाक ।।
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झूठ भरा यह दौर है,मतलब के सब लोग ।
प्रेम विषैला हो गया,फ़ैल रहे नित रोग ।।
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पड़ना मत इस जाल में,ध्यान भंग हो जाय ।
राँझा मजनूँ ना दिखे,विकट घड़ी जब आय ।।
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नाम सरस अनमोल है,सरस जुड़े अनमोल |
सरस-सरस सब बोलिये,सरस बिके बेमोल ||
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आईना सच को कहे,मन भीतर तो झांक ।
दोष निकालो गैर में,लो खुद को भी आंक ।।
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क्षमा दान तुम दीजिये,जो कोउ त्रुटि होय ।
क्षमा बडो को शोभती,यही नेह को बोय ।।
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हार कबहू न मानिये,खेलो चाहे खेल ।
मन के हारे हार है,हार-जीत को मेल ।।
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जीत तुझे जो चाहिए,कर्मवीर कर काम ।
हार जीत की राह है,लगे रहो अविराम ।।
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अहम वहम को त्याग कर,करते रहना काम |
ले खुद से संकल्प तुम,करदो जग में नाम ||
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फूटी गागर हो अगर,भर ना पाए नीर |
ऐसी ही समझो पथिक,लिखी हुई तक़दीर ||
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कलम खुदा की गर लिखे,मानस की तकदीर |
कर्म प्रबल होता नही,ना सागर के तीर ||
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नमन करूँ हे नाथ शिव,धर चरणों में ध्यान |
तुम देवो के देव हो,करो जगत कल्याण ||
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शुक्लपक्ष की चौथ औ,भादो का जब मास |
गणपति जी जन्मे यहां,हरे सभी के त्रास ||
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_✍🏽नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"©_
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👉🏻👉🏻संक्षिप्त परिचय👈🏻👈🏻
नाम : नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
पिता : श्री रमेश चंद शर्मा
जन्म : 10 मई 1991
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिंदी)
पता : देव औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान
के पास भगवती कॉलोनी, बयाना
(भरतपुर) राज•,पिन :321401
संपर्क :
+91 84 4008-4006
+91 95 4989-9145
ईमेल : [email protected]
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