महाशृंगार छन्द का विधान  

१- यह चार पक्तियों  का  छन्द है, प्रत्येक पक्ति में कुल  16  मात्रायें हो ती हैं
हर पक्ति  का  अन्त गुरु  लघु से करना अनिवार्य , दूसरी  ओर  चौथी  पक्ति
 में  तुकान्त  मिलान  उत्तम पहली और तीसरी तथा दूसरी और चौथी पंक्ति
 तुकांत मिलान सर्वोत्तम आदि में त्रिकल द्विकल व अंत द्विकल त्रिकल से 

 छंद : महाशृंगार/MahaShringar 

मित्र क्या  बीती  हम  पे देख, 
गजब थी ये अँधियारी रात
स्वप्न में मिली हमें वो आज, 
नैन   से  हुई   नैन की बात

बात हुई  दो  नैनों  के बीच,
अधर हो गये स्वतः ही सुन्न
मान मय की भारी बरसात
मद्य  पी  नैन  नशे  में टुन्न

टुन्न हो भूल  गये  मन चाह,
देखते    रहे    एकटक   रूप
कंचनी  तन,मुखमंडल चाँद,
शीर्ष  मानो ज्यों उजली धूप

धूप   भी  थी सर्दी  की जान,
ठंड    में    लेकर  आती  हर्ष
दीप से हुआ हिय  तम अंत,
देख  सुधि भूल गया उत्कर्ष

भूल सुधि, नैना  रहे   निहार,
छोड़कर  मन भीतर की बात
चित्त  में  पनपा वो अनुराग,
नहीं   कह  पाया  उनसे रात

रात  भर   जले   हिय  में दीप,
पर्व      दीपों   का, बाँटो   प्रीत
मेल मन से मन का  हो आज,
मीत  यह  समय  रहा  है बीत

बीतता समय  जा  रहा मित्र,
हाथ   से   जैसे   फिसले  रेत
अंततः    आई   घड़ी  विचित्र
स्वतः  ही   हो  आया था चेत

चेत  से  पहले, भर मुस्कान
छीन  कर  मुझसे  मेरा चैन
वेदना,  अरु  मुट्ठी   भर याद
भेंट   विरही   को  लाई  रैन
नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
श्रोत्रिय निवास बयाना
UTKARSH KAVITAWALI
mahashringar chhand

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