!! उत्कर्ष दोहावली Utkarsh Dohawali !!
गजमुख की कर वंदना, धर शारद का ध्यान
पञ्च देव सुमिरन करूँ, रखो कलम का मान
ईश्वर के आशीष से, दूने हो दिन रात
बिन मांगे सबको मिले, मेरी यही सौगात
अधर गुलाबी मधु भरे, तिरछे नैन कटार
मुख गोरी का चाँद सम, उतरा हिय के पार
इक दूजे को थाम कर, बढे चलो सब यार
मिलजुलकर विस्तृत करो,हिन्द काव्य परिवार
बिछड़ गये जब से सजन, पीर बनी मन रोग
तन्हा बिन तेरे हुआ, कैसा यह संयोग
धड़क रहा है जीयरा, तडप बनी है पीर
किधर गये तुम रांझना,व्याकुल तुम बिन हीर
धड़कन पर तुम ध्यान दो, समझ इसे गंभीर
कलम उठाकर सब लिखो, खटक रही जो पीर
मनमोहक दो कुँवर है, जिनका रूप अनूप
ओज झलकता दूर से, मानो वो हों भूप
धक-धक धड़कन है चले, धड़क रहा मन जीव
देखा जबसे नैन भर, मान लिया है पीव
मान, प्रेम जिस घर रहे, वहां ईश का वास
मिलजुल कर सब जन रहो, पूरी होगी आस
सच को कभी न त्यागिये,सच है पुण्य समान
झूठ बोलकर छल रहे,खुद को क्यों जजमान
इक दूजे से सीखकर, पाते सब ही ज्ञान
पूरण कोई है नही, फिर क्यों ये अभिमान
बात कहूँ में लाख की, धर थोड़ा सा ध्यान
ज्ञान मिले जित भी तुझे, ले तू तज अभिमान
माना है दूरी मगर, समझो कभी न दूर
दिल में तुम हरदम रहे, लेकर प्यार हजूर
खेल - खेल में खेलकर, खेल गये वो खेल
हम खेले जब खेल को, हमे न पाए झेल
साँझ सवेरे जोहती, साजन थारी बाट
कद आओगे थे लिखो, मनवा भरे उचाट
टेढ़ा मेडा पथ नही, बढ़े चलो तुम यार
मिट जाएगा सब यहाँ, बाकी बस यह प्यार
नारी के उत्थान को, करना जतन नवीन
रहे न कोई फिर यहाँ, नारी अबला दीन
पढ़ लिखकर आगे बढ़ो, करो जगत में नाम
दृढ़ निश्चय संकल्प ले, लगे रहो अविराम
नारी संयम नाम है, बुध्दि कुशल अनुरूप
समय देख धारण करो, नारी नूतन रूप
हार कभी मत मानना, बाधाएं हों लाख
लग्न लगा कर कर्म से, कर देना तू ख़ाक
झूठ भरा यह दौर है, मतलब के सब लोग
प्रेम विषैला हो गया, फ़ैल रहे नित रोग
पड़ना मत इस जाल में, ध्यान भंग हो जाय
राँझा मजनूँ ना दिखे, विकट घड़ी जब आय
नाम सरस अनमोल है, सरस जुड़े अनमोल
सरस - सरस सब बोलिये, सरस बिके बेमोल
आईना सच को कहे, मन भीतर तो झांक
दोष निकालो गैर में, लो खु द को भी आंक
क्षमा दान तुम दीजिये, जो कोउ त्रुटि होय
क्षमा बड़ेन कूँ शोभती, यही नेह कूँ बोय
हार कबहू न मानिये, खेलो चाहे खेल
मन के हारे हार है, हार - जीत को मेल
जीत तुझे जो चाहिए, कर्मवीर कर काम
हार जीत की राह है, लगे रहो अविराम
अहम वहम को त्याग कर,करते रहना काम
ले खुद से संकल्प तुम,करदो जग में नाम
फूटी गागर हो अगर, भर ना पाए नीर
ऐसी ही समझो पथिक, लिखी हुई तक़दीर
कलम खुदा की गर लिखे,मानस की तकदीर
कर्म प्रबल होता नही,ना सागर के तीर
नमन करूँ हे नाथ शिव,धर चरणों में ध्यान
तुम देवो के देव हो,करो जगत कल्याण
शुक्लपक्ष की चौथ औ, भादो का जब मास
गणपति जी जन्मे यहां, हरे सभी के त्रास
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✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"©
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उत्कर्ष दोहावली Utkarsh Dohawali |
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