!! उत्कर्ष दोहावली Utkarsh Dohawali !!
कविता लेखन सब करो,साध शिल्प अरु छंद
कविता खुद से बोलती, उपजे बहु आनंद
कविता लिखना सीखते, बड़े जतन के साथ
मुख को जोड़ा पैर से, धड़ से जोड़े हाथ
धड़ से बाजू जोड़िये, मुख को ऊपर जोड़
नीचे पैरो को रखे, नही लेख का तोड़
बारिश आई जोर की,मन मा उठे हिलोर
अंग अंग महकन लगो,नाचन लाग्या मोर
सजन गये परदेश कूँ, कब आवेंगे द्वार
राह निहारत बीत ग्यो, देख महीना क्वार
सावन में सुन री सखी, विरहा बैरिन संग
साजन कूँ देखे बिना, चढ़े न मोपे रंग
तडप रहा में भी यहाँ, सिसक रही है रात
चंद घडी की देर है, होंगे हम तुम साथ
✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"©
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उत्कर्ष कृत दोहावली |
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