(1)
फिरो क्यों फेसबुक पर ढूँढते तुम प्यार को यारो ।
मिले सच्चा यहाँ फिर कब,सुनो सब इश्क के मारो ।
रही ये फ़ेसबुक जरिया,जुडो इक दूसरे से तुम ।
मगर मतलब ज़माना है,इसे भी जान लो प्यारो ।।
(2)
जमाना है बड़ा जालिम,समझ दिल को न पाता है ।
रखे यह स्वार्थवश रिश्ते,कहाँ रिश्ते निभाता है ।
अगर आये कभी विपदा,भरोसा स्वयं पर रखना ।
दिखावा है नजर का ये,नजर कोई न आता है ।
(3)
*इंतज़ार पर यूँही*
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बिठा कर हम निगाहों को,किये इन्त'जार बैठे है ।
मचलता है कि पागल मन,लिए हम प्यार बैठे है ।
तमन्ना इक हमारी तुम,रही कब दूसरी कोई ।
चली आओ सनम अब हम,हुए बेक'रार बैठे है ।
(4)
वतन के मान से बढ़कर,नही निज मान ये यारो ।
जुबां से कीमती कब है,हमारे प्राण ये यारो ।
भले ये शीश कट जाये,झुका कोई नही पाये ।
बनो ऐसे सदा ही तुम,रहे अभिमान ये यारो ||
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
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