छंद : मत्तग्यन्द सवैया
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पाप बढ़े जिससे वसुधा,प्रभु नित्य कँपे यह संकट टारो ।
मान मिले नहिं मात-पिता,मद मोह बसो सुत है मतबारो ।
गाय मरे अब नित्य यहाँ,यह मानवधर्म अधर्म सम्हारो ।
आप गये सगते कह कें,फिर केशव आकर सृष्टि निखारो ।।
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✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
+91 84 4008-4006
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