छंद : मत्तग्यन्द सवैया
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नैनन   ते   मद  बाण  चला,
             मन भेद गयी  इक नारि निगोरी ।

राज किया जिसने  दिल पे,
             वह  सूरत  से  लगती बहु भोरी ।

चैन गयो फिर  खोय  कहीँ,
             सुधि बाद रही हमकूँ कब थोरी ।

प्रेम  करो   हमने   जिससे,
             मन मेल हुओ वह चाँद चकोरी ।।

नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
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