छंद : मत्तग्यन्द सवैया
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जोगिन एक मिली जिसने चित,
चैन चुराय लिया चुप मेरा ।
नैन बसी वह नित्य सतावत,
सोमत जागत डारिहु घेरा ।
धाम कहाँ उसका नहिं जानत,
ग्राम, पुरा, बृज माहिंउ हेरा ।
कौन उपाय करूँ जिससे वह,
मित्र करे अब आकर भेरा ।।
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
+91 84 4008-4006
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