गजमुख की करूँ वंदना,धर   वाचा का ध्यान ।
पंचदेव   गुरु देव जी ,रखो  कलम का मान ।।

पग वंदन गुरुदेव का,नित्य नवाऊँ शीश ।
ज्ञानदान तुम  दीजिये,दो      स्नेहाशीष ।।

नमन तुम्हे  माँ  शारदे,नमन काव्य परिवार ।
नमन धरा यह पावनी,नमन करो स्वीकार ।।

कण कण में वह व्याप्त है,बदल  नजरिया देख ।
भाग्य    विधाता   कर्म  है,लिखे इसी से  लेख ।।

सत्य छुपे कब झूठ से,सदा  सत्य  सुख  छाँव ।
झूठ भले  पुरजोर  हो,नही    झूठ    के पाँव ।।

मरुधर   माटी    पावनी,जाये     वीर   अनेक ।
भामा  पन्ना    इत   हुये,किये  कर्म  जो  नेक ।।

गिरवी    म्हारी जिंदगी,सांस रही अब टूट ।
प्रेम पाश में जब फँसो,गये भाग तब फूट ।।

प्रभो जीव  के मेल को,कहते  जीवन  जान ।
भजन मित्र भव बीच का,भैया दो सब ध्यान ।।

नारी  सगरी    एक सी,लेती नर की जान ।
मोह अगर खुद से तुम्हे,रहे दूर यजमान ।।

परिश्रमी की भोर है,अलसाये की शाम ।
हम तो ठहरे बीच के,भजे राम को नाम ।।

प्रेम मात का अतुल है,अजब पिता का प्यार ।
न्यारी बहिना प्रीत अरु,न्यारा     यह   संसार ।।

भोजन में नखरा नही,करना   भैया   आप ।
भोजन मन प्रसाद है,तजत लगे फिर पाप ।।

समय बड़ा ही कीमती,रखना इतना ध्यान ।
समय समय से  देत है,बन्धु बहिना ज्ञान ।।

मात   भवानी  शारदे,अब तुमसे ही आस ।
महिमा तेरी जग कहे,तुमसे   ही  विश्वास ।।

सदा सत्य  के  पथ चलो,होता हर्ष विषाद ।
झूठ क्षणिक मन भावना,देत कष्ट जो बाद ।।

शब्द सही सा दीजिये,करता  हूँ   अनुरोध ।
बिना अर्थ के शब्द पर,कैसे हो फिर शोध ।।

जर जमीन जोरू नही,हूँ निर्धन अरु दीन ।
प्रेम रतन बस पास में,कहता बाल नवीन ।।


मरुधर माटी पावनी,जाये   वीर  अनेक ।
भामा पन्ना  इत हुये,किये कर्म यह नेक ।।

प्रेम  भाव  की भूख है,चाहत माँ की गोद ।
मित्र भ्रात का साथ हो,खेले खेल विनोद ।।

खुदी खुदाई अब मिले,बना हाल व्यापार ।
सखा  मौत तो सत्य है,आनी है एकबार ।।