!! बचपन !!
[ मत्तग्यन्द/मालती सवैया ]
(प्रथम)
बालक थे जब मौज रही,मन चाह रही वह पाय रहे थे ।
खेल लुका छिप खेल रहे,मनमीत नये हरषाय रहे थे ।
चोट नही तन पे मन पे,उस वक़्त खड़े मुस्काय रहे थे ।
रोक रहो कब कौन हमें,सब आपहि प्रीत लुटाय रहे थे ।
(द्वितीय)
वक़्त बढा अपने पथ पे,हम बाद चले गुरु ज्ञानहु पाने ।
बाल सखा सब छूट गए,अब मित्र बने सब ही अनजाने ।
हाथ किताब थमाय दई,पढ़ पाठ हमें फिर प्रश्न बताने ।
बाल पना बिसराय बढ़े,जग रीति लगे हम भी अपनाने ।
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
2 Comments
https://youtu.be/4uXIfxt4L-Y
ReplyDeletehttps://youtu.be/UUTXCZPl3tc
जी सादर आभार
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