गाथा : दानवीर कर्ण की (आधार छंद : आल्हा)Gatha Daanveer Karn Ki (Aalha Chhand)


दानवीर ,  कुंती   का    बेटा,  कर्ण   नाम    जिसकी   पहचान
कथा  सुनाऊँ  आज  उसी  की , श्रोताओ    तुम   देना  ध्यान

शूरसेन   राजा  का  संगी, कुन्तिभोज   था    जिनका   नाम
कोई  सन्तान  नहीं  थी  उनके, सूना बच्चे   के   बिन  धाम

शूरसेन   की     राजदुलारी, पृथा  बनी  उस   गृह  की   मोद
शूरसेन    से   कुंतिभोज ने, माँगा   उस    कन्या   को  गोद

“पृथा”   कुंति  की  बेटी  बनकर, पाई   कुंती  अपना     नाम
महल  पधारे  साधुजनों  की, सेवा  करना  नित  का    काम

एक     दिवस    आये   दुर्वासा,  सेवा   देख   दिया   वरदान
पूर्ण  मनोरथ  देव  करेंगे, जिनका  धर  लोगी  तुम   ध्यान

मन्त्र  परीक्षण   को  कुंती  ने, सूर्य  देव  को  लिया   पुकार
मंत्र   प्रभावी   था  श्रोताओं , सूर्य   देव   प्रगटे  उस    द्वार

सूर्यदेव   बोले   कुंती  से,  क्या    है  देवी   मन   की   आस
नहीं   कहोगी   तो   फिर   होगा, दुर्वासा   अरु   तेरा   नाश

सुनकर   वाणी   कुंती  बोली,  क्षमा  करें  मुझको    आहूत
सूर्यदेव    तेजस्वी    तुम   हो,   तुम       जैसा  हो  मेरे पूत

सूर्यदेव   देक र   इच्छाफल,  तुरत    हो    गए   अंतर्ध्यान
उस  वर से  अविवाहित  कुंती, ने   पाई  थी  इक  सन्तान

जग  लज्जा  में  बांध पोटली,  गंगा  में  सुत  दिया  बहाय
जिसका  रहा  राम  रखवाला,  उसको  कोई  मार  न  पाय

बहती  - बहती     लगी पोटली, गंगा  के  तट  से अब आय
धृतराष्ट्र का सारथि अधिरथ,जिधर अश्व को नीर पिलाय

दृष्टि  पड़ी अधिरथ की उस पर,देख रूप अधिरथ चकराय
कुण्डल  कवच पहनने वाला,किसने जल  में  दिया  बहाय

रूप  अलौकिक   अरु  तेजस्वी,देख  देख अधिरथ हरषाय
बिना   देर  के फिर अधिरथ ने,बालक कर में लिया उठाय

धन्यवाद   पुनि  -  पुनि  माँ गंगे, रखा  आपने  मेरा मान
पूर्ण  हुई अधिरथ  की इच्छा, मिटा  दोष  जो  निःसन्तान
UTKARSH KAVITAWALI
DAANVEER KARN


क्रमशः जारी........

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Utkarsh poetry : उत्कर्ष कवितावली