गजल : हाल जैसे रहें,मुस्कराते रहो 

Gazal : Haal Jaise Rahe Muskrate Raho

 212-212-212-212[फाइलुन×4] 
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हाल   जैसे      रहें,   मुस्कराते     रहो
अश्क   हैं    कीमती, मत  गिराते  रहो
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हँस  रहे  लोग  सब, आज  हालात   पे
प्रेम   की   राह   है, सब   भुलाते   रहो
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बेवफा  वो  नही, वक़्त   दुश्मन   बना
आँधियो    से  यहाँ, सब   छुपाते  रहो
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ढाल खुद को,हकीकत  की  बुनियाद पे
आशियाँ   साँच   का  फिर  बनाते रहो
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प्रेम  है चीज क्या, ऐ ! “सुमन” तू बता
टूट  कर,  दो  दिलो   को  मिलाते  रहो
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नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
utkarsh Kavitawali
हाल जैसे रहें,मुस्कराते रहो : गजल