सत्य सनातन सदा ही शिव है

utkarsh kavitawali

सत्य सनातन सदा ही शिव है


पावन श्रावण  मास लगौ, धर ध्यान उपास  महाशिव पूजौ
काल यही इक कालन के, इनसौ  कब  कौन  कहाँ पर दूजौ
हो करुणा हिय भाव दया, तब नाथ प्रसन्न नहीं फिर जूझौ
सार यही  सब  ग्रंथन कौ, अब  और  नवीन  नहीं तुम बूझौ

जय   भोले    शंकर, प्रभो   शुभंकर, दीनबन्धु      कैलाशी
कर    जोड़   पुकारूँ,  राह     निहारूँ, आँखें   दर्श   पिपासी
झूठी  यह  माया,  छलती  काया, सत्य   आप  अविनाशी
हे ! नाथ  सँवारो, भव    से  तारो, चाहे   यह    अभिलाषी

एकाक्ष,    महाकांत,     महादेव,   भगाली
हे ! नाथ  महाकाल  गुणोकीर्ति    निराली
मैं मूर्ख  नहीं बुध्दि, दया   आप  दिखाओ
है द्वार  खड़ा  दीन, प्रभो   कष्ट मिटाओ

एकाक्ष,    महाकांत,     महादेव,   भगाली
हे ! नाथ  महाकाल  गुणोकीर्ति    निराली

आसक्ति   शरीरी,   न हमें, राह  सुझाती
है  लक्ष्य  परे    जीव   निरुद्देश्य   बनाती
बैचैन   रहूँ    भक्ति  बिना भाव  जगाओ
अज्ञान   हरो    नाथ,  कृपादृष्टि  बनाओ

एकाक्ष,    महाकांत,     महादेव,   भगाली
हे ! नाथ  महाकाल  गुणोकीर्ति    निराली

है  कौन   सगा   और  यहाँ कौन  पराया
संदेह  यही    एक    हमें    नित्य सताया
आरंभ  तुम्ही अंत  तुम्ही  काल  कपाली
संसार   परे    आप   करो   नाथ कृपाली

एकाक्ष    महाकांत     महादेव    भगाली
हे नाथ  महाकाल  गुनीकीर्ति    निराली


देवो    के   वह   देव  है, भोले    शंकर    नाम
ध्यान धरो नित नेम से, अंत मिले हरि धाम
अंत   मिले  हरिधाम, पार   भव  के  हो जाये
पूरण   हो सब काज, मिले फिर मन जो चाहे
कहे   भक्त  उत्कर्ष, नाव  भव  से  प्रभु खेवो
मैं    मूर्ख      नादान, राह   दिखलाओ   देवो
Utkarsh Kavitawali
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