छंद : आल्हा/वीर शैली : व्यंग्य अलंकरण : उपमा,अतिशयोक्ति --------------------------------------------- चींटी एक चढ़ी पर्वत पे, गुस्से से होकर के लाल । हाथी आज नही बच पावे, बनके आई मानो काल । -------- कुल मेटू तेरे मैं सारो, कोऊ आ… Read more
छंद : आल्हा/वीर शैली : व्यंग्य अलंकरण : उपमा,अतिशयोक्ति --------------------------------------------- चींटी एक चढ़ी पर्वत पे, गुस्से से होकर के लाल । हाथी आज नही बच पावे, बनके आई मानो काल । -------- कुल मेटू तेरे मैं सारो, कोऊ आ… Read more
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उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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