महाशिव रात्रि
                      
                      
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                          महादेव  को  था मिला,माँ  गौरा  का साथ ।
                        
                        
                          फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी,बनी महाशिव रात ।।
                        
                        
                          रात    मंगल    फलदायी ।
                        
                        
                          साथ भर खुशियाँ लायी ।।
                        
                        
                        मद
                      
                      
                        ----
                      
                      
                        मदिरा कंचन कामिनी,और धरा का प्यार ।
                      
                      
                        आज जरूरत यह बने,चाहे  अंत  बिगार ।।
                      
                      
                        बात  वो  ही  ना माने ।
                      
                      
                        सार इनका नहि जाने ।।
                      
                      
                        प्रेम
                      
                      
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                        तुझसे    मेरी   प्रीत  है,तू     मेरा   अनुराग  ।
                      
                      
                        तुझ बिन मै पूरण नही,रंग बिना ज्यो फाग ।।
                      
                      
                        बाद   जी   कैसे  पायें ।
                      
                      
                        मार्ग यह आप सुझायें ।।
                      
                      
                         राजस्थान
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पीले पीले फूल है,अधरों पर मुस्कान ।
मन हरखे जा भूमि में,वो है राजस्थान ।।
यहां की बात निराली ।
मनाते नित्य दिवाली ।
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पीले पीले फूल है,अधरों पर मुस्कान ।
मन हरखे जा भूमि में,वो है राजस्थान ।।
यहां की बात निराली ।
मनाते नित्य दिवाली ।
                           मित्र
                        
                        
                          --------
                        
                        
                          ज्ञान मित्र घर से परे,नारि मित्र घर द्वार ।
                        
                        
                          दवा मित्र है रोग  में,धर्म मित्र भव  पार ।।
                        
                        
                          मित्र की यह परिभाषा ।
                        
                        
                          जगा देता  वह  आशा ।।
                        
                        
                          गुण
                        
                        
                          -----
                        
                        
                            वसुधा पर निपजे सभी,कंचन   पाहन रेत ।
                          
                          
                            मूल्य  यहाँ  गुणभूत ही,चुनो मीत कर चेत ।।
                          
                          
                              कौन सी  माला फेरी ।
                            
                            
                              रही क्या चाहत तेरी ।।
                            
                          
                        श्रोत्रिय निवास बयाना
                      
                      
                        ब्लॉग विजिट करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद 
                      
                      
                         Thank you For Visit.
                      
                    

 
                 उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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