मेरी जिंदगी मझदार में है,
अब कैसे पार उतारू....
सोचता पल पल यही में,
कैसे खुद को निकालूँ....
वक़्त भी कम है पड़ा अब,
कौन वो जिसे पुकारू....
मेरी जिंदगी मझदार में...........२
यहाँ वहां सब अपने लगते,
झूठा मन अंदेशा था....
वक़्त ने मुझको चेताया था,
यही नीति संदेशा था...
फंसा रहा में प्रेम जाल में,
जीत उसे कब हारुँ....
मेरी जिंदगी मझदार में है,
अब कैसे पार उतारूं...
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✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"©
+91 84 4008-4006
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