बैठ प्रिया, तटनी तट पे,
यह सोचत है कब साजन आवे ।
साँझ ढली रजनीश उगो,
विरहा बन बैरिन मोय सतावे ।
सूख रही मन प्रेम लता,
यह पर्वत देख खड़ो मुसकावे ।
देर हुई उनको अथवा,
कछु और घटो यह कौन बतावे ।
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
Mattgyandyasavaiya |
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