आजाऔ मिलबे सजन, जमना जी के पार
तड़प रही   हूँ  विरह में, करके   नैना  चार


कैसे  आऊँ   मैं   प्रिया, जमना  जी के पार
घायल  मोहे  कर   गए, तेरे   नयन   कटार


तुम  तौ  घायल है गए, देख  कोउ कौ रूप
मैं  बैरानिया  हूँ   बनी, तेरी  जग   के  भूप


मैं   तेरौ   हूँ   राधिका, और  साँच  ई प्यार
आधौ  हूँ   तेरे   बिना, तू     मेरौ    आधार


छलिया कारे  मोहना, नाय  बात    में सार
कोस रही मैं स्वयं को, क्यों कर बैठी प्यार

  ✍नवीन श्रोत्रिय"उत्कर्ष"
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