उत्कर्ष दीप जुगलबंदी - ०२
नहीं होता अशुभ कुछ भी, सदा शुभ ये मुहब्बत है
बसाया आपको उर मे, तुम्हीं में आज भी रत है
बताऊँ मैं प्रिया कैसे, रहीं जब दूर तुम मुझसे
मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये इजाजत है
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
-------------------------------
मुहब्बत तो बड़ी शुभ है, इसे परिणय बना दो ना
कि थामो हाथ तुम मेरे, नहीं फिर से कभी खोना
सजन मैं भी बहुत तड़पी, गए तुम दूर जब हम से
मिलन श्यामा कहे कर लो, सुनो ऐ श्याम वर लोना
- दीप्ति अग्रवाल दीप
-------------------------------
कनक वो कब भला जिससे, लगे डर कान कटने का
नजारों से नजर फेरो, बड़ा खतरा भटकने का
तिरे नज़दीक रहना तो, मुझे भी है लगे प्यारा
मगर डर है तो ख़्वावों की, हमें नौका पलटने का
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
-------------------------------
सुनो डर के भला कैसे, कहीं जीवन गुजारेंगे
रखो विश्वास भगवन पर, वहीं नौका संभालेंगे
रहो नजदीक नजरों के, नहीं तुम दूर अब जाना
कनक तुम ही सजन मेरे, तुम ही से तन सजाएंगे
- दीप्ति अग्रवाल दीप
-------------------------------
कनक माना अगर सजनी, हमें तन पर सजा लेना
कनक की भाँति ही हमको, नयन तारा बना लेना
मगर होता कनक चोरी, नहीं ये भूल जाना तुम
सदा रखना हिफाज़त से, नहीं नजरें हटा लेना
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
-------------------------------
तुम्हारी याद की खुशबू, अकेले में मुझे आई
मुंदी आँखें नशे में ज्यों, सुगन्धित आज तनहाई
गुजारिश है यही तुमसे, कभी तुम भी चले जाओ
बिता के साथ मेरे दिन, नई यादें बना जाओ
- दीप्ति अग्रवाल दीप जी
--------------------------------
तुम्हारे पास तो आऊँ, मगर डर है जुदाई का
लिखी किसके मुकद्दर में, भरोसा क्या खुदाई का
किया है प्रेम तुमसे ऐ !, सनम ये याद तुम रखना
भरोसा प्यार पर मुझको, सदा इसकी खराई का
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
-------------------------------
भरोसा प्यार पर तुमको, भरोसा ईश पर हमको
नहीं संशय इनायत पर , मुकद्दर में लिखा तुमको
करो विश्वास तुम भी अब, डरो ना पास आने से
मिलन सम्भव हुआ आपना, भुला दो तुम सनम गम को
- दीप्ति अग्रवाल दीप जी
-------------------------------
नहीं है रंज, पर मुझको, फ़िकर केवल तुम्हारी है
छुपा कर था रखा तुमको, खता तो ये हमारी है
मिले इस बार जो मौका, बता दूँगा जमाने को
रहीं वो एक तुम ही तो, लगे जो प्राण प्यारी है
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
--------------------------------
पुकारे राधिका यदि अब, तुरत मिलने चला जाऊँ
मिलूँगा श्याम बन कर के, अगर श्यामा को उत पाऊँ
मिलन रस रास मय होगा, बता देना प्रिये उनको
रटे बृज नाम अधरों पे, यहाँ जब प्रेम बरसाऊँ
-नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष |
2 Comments
वाहहह... भावपूर्ण बेहतरीन जुगलबंदी , दीप जी, और उत्कर्ष साहब आप दोनों की रचनाएं अपने आप में श्रंगार और समर्पण के अदभुत भाव। पर्फेक्ट केमिस्ट्री ������
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय/आदरणीया, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लेखन को गति प्रदान तो करेगी ही साथ ही मेरा मनोबल भी बढ़ाएगी, सराहना के लिये पुनः कृतज्ञ हूँ जी
Delete