MAHASHRINGAR-CHHAND छं : महाशृंगा


प्रकृति    सब   झूम  उठी है आज
सुगंधित   तन    मन  आँगन द्वार
बिछाये    पलकें       बैठी    देख
रत्नगर्भा          करने         श्रृंगार

पालना    डाले     द्रुम    दल   और
पुष्प     ने      पहनाया      परिधान
झुलाती    झूला     जिसको   वात
कोकिला   करती    है    मृदु  गान

जलज खिलकर  यों  ढकता ताल
मान     लो      देता    वह    संकेत
समेटो    अपने       कष्ट      मनुष्य
बढ़ो     आगे,  करके     सब   चेत

लगे    हैं  पल्लव,   पुष्प    नवीन
हुआ     जन  मन   को हर्ष अनन्त
पहन   कर    पीले  - पीले   वस्त्र
खुशी    लाये    ऋतुराज    बसंत

नवीन  श्रोत्रिय   उत्कर्ष
श्रोत्रिय  निवास बयाना
+91 95 4989-9145


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    14 Comments

    1. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 23 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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      1. नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”Friday, 22 February 2019 at 00:22:00 GMT+5:30

        जी, हार्दिक धन्यवाद, जी हम अवश्य पढ़ेंगे

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    • गोपेश मोहन जैसवालSaturday, 23 February 2019 at 20:06:00 GMT+5:30

      काश ! हम प्रदूषित और घुटते महानगरों के निवासियों के जीवन में भी कभी ऐसा मदमाता, ऐसा सुवासित, बसंत आए !

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      1. नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”Saturday, 23 February 2019 at 23:59:00 GMT+5:30

        नमन आभार आदरणीय, अपनी स्नेहिल प्रतिक्रिया द्वारा मेरा उत्साहवर्धन करने के लिये मैं आपका आभारी हूँ ।

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    • बहुत ही जीवंत वर्णन बसंत का प्रिय नवीन जी | काश द्र्हरा पर ये बसंत अक्षुण हो और साथ में आपकी लेखनी का बसंत यूँ ही खिला रहे | सस्नेह शुभकामनायें सुंदर लेखन के लिए |

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      1. नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”Monday, 11 March 2019 at 11:01:00 GMT+5:30

        स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिये दिली शुक्रिया रेणु जी..

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