छंद : महाशृंगार
प्रकृति सब झूम उठी है आज
सुगंधित तन मन आँगन द्वार
बिछाये पलकें बैठी देख
रत्नगर्भा करने श्रृंगार
पालना डाले द्रुम दल और
पुष्प ने पहनाया परिधान
झुलाती झूला जिसको वात
कोकिला करती है मृदु गान
जलज खिलकर यों ढकता ताल
मान लो देता वह संकेत
समेटो अपने कष्ट मनुष्य
बढ़ो आगे, करके सब चेत
लगे हैं पल्लव, पुष्प नवीन
हुआ जन मन को हर्ष अनन्त
पहन कर पीले - पीले वस्त्र
खुशी लाये ऋतुराज बसंत
नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
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