उपजाति सवैया

उपजाति सवैया  विधान :  उपजाति सवैया क्रमशः दो  सवैया का  योग है , अथवा मिश्रित रूप है । जैसे इस सवैया में क्रमशः मत्तग्यन्द सवैया और सुंदरी सवैया का समावेश है । ताप परे नित तेज लग्यौ अब, फागुन ग्रीष्म ऋतू भर आईं मेल    मिलाप  करें  ऋतु दो, बचकेउ  नव… Read more

भगवती वंदना (पद)

अब तौ  आजा  मात भवानी तोहि   रिझामें, तोहि   मनावें, रे  ! जग की ठकुरानी अर्चन - वंदन  कौ  विधान का, बोध न, हम  अज्ञानी श्रद्धामय   हो   थाल   सजायौ, करें    भाव   अगवानी कुमकुम  टीका   भाल लगाऊँ, ओढ  चुनरिया  धानी धूप, दीप,   नैवैद्य,  समर्पित,  तुमको   मा… Read more

मैंने देखी नारि हजार

मैंने   देखी   नारि   हजार पर    ऐसी   कहूँ   न पाई जब   देखी  पहली   बारी   बू   नारि   सुशीला  न्यारी बाने  कूटी  सब  ससुरारि संग पति की करी  कुटाई मैंने   देखी   नारि   हजार पर    ऐसी   कहूँ   न पाई आयौ    दूजी  कौ  नम्बर बाकौ   खातौ   पीत… Read more

उपेन्द्रवज्रा छंद

उपेंद्रवज्रा छंद  UPENDRAVJRA CHHAND [जतजगुगु] छंद विधान :  क्रमशः  जगण, तगण, जगण, दो गुरु न   साधना,  वंदन, मोहि  आवै तुम्हें  रिझाऊँ, विधि  को बतावै सुवासिनी   सिद्ध  सुकाज कीजै विवेक औ बुध्दि “नवीन” दीजै - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष उपेन्… Read more

पदपादाकुलक छंद

पदपादाकुलक छंद का विधान एवं उदहारण पदपादाकुलक  छंद  {PADPADAKULAK CHHAND} पदपादाकुलक   छंद विधान  :  –   पदपादाकुलक छंद  के चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६ मात्रायें होती हैं , छंद के आरम्भ में एक गुरु अथवा दो लघु (लघु-लघु) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिक… Read more

कृष्ण विशाखा वार्तालाप (पद)

तोकूँ   ढूँढू    वर   मैं   सुयोग जो तेरे मन   भाय   विशाखा, जाकौ   तेरौ     योग चन्द्र    सरीखौ, वीर   बाँकुरौ, तन कौ  रह्यौ  निरोग रूठे  तौ    पढ़   प्रेम  रिझावै, मेटै  आत्म  अनुयोग कृष्ण  कन्हाई  सों   नैन  समावै, सुखद विवाह संयोग क्यों कर… Read more

नाय करी मैंने माखन चोरी (पद)

BHAKTIPAD नाय  करी   मैंने    माखन  चोरी अकारथ  मोय   फ़ँसा   रहीं  रीबात  बनामत कोरी निस दिन छेड़त,कारौ कह-कह,और आप कूँ  गोरी छुपा     बाँसुरी, मारै     कांकर,कहें मटकिया फोरी करौ   भरोसौ  को   विधि  मैया,तू  तो  है बड़ भोरी Read more

जै ले रे गोपाल कन्हाई

जैं  लै   रे  गोपाल  कन्हाई दाल चूरमा, माखन मिसरी, नहीं दूध दधि  लाई रूखी सूखी, गेहूँ     रोटी, जो   मो  सों बन पाई ता संग डरी लाई हूँ गुड़ की,दो अब भोग लगाई का  भावै   तेरे मन   कान्हा, जानै   को  यदुराई - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष Read more

Sundari-madhavi Savaiya

सुंदरी-माधवी सवैया विधान : क्रमशः आठ सगण और एक गुरु  अभिमान बुरौ जग जानत है, पर मानत को यह भेद भलौ है । मन मानहु भूल गयौ अपनौ, अपमान सहे सुख  गैर खलौ है । अपनेउ   रिवाज  तजे सगरे, अब रीति पछाँह  नवीन चलौ है । जिस ओर निहार रहे नयना, उस ओर हमें यह दृश्य… Read more

अब संहार जरूरी है

उ ठे धूल की जब जब आँधी, तो जलधार जरूरी है उठे  धूल  की  जब  जब आँधी, तो    जलधार   जरूरी है बहुत   हुआ  जुर्मों  को   सहना, अब    संहार   जरूरी  है आज  एक   नारी की  इज्ज़त, लुटती  रही  भीड़  भर में  खड़े रहे  कुछ  मौन  साध कर, कुछ  दुबके अपने घर में कुछ के  अ… Read more

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