उसका निखरा रूप था,नागिन जैसे बाल ।
घायल करती जा रही,चल मतवाली चाल ।।
चन्द्र बदन कटि कामनी,अधर बिम्ब सम लाल ।
नयन कटारी संग ले,करने लगी हलाल ।।
जबसे देखा है तुझे,पाया कहीं न चैन ।
प्रेम रोग ऐसा लगा,नित बरसत है नैन ।।
प्रीतम से होगा मिलन,आस भरे दो नैन ।
स्वपन सलोने बुन रही,देखो फिर से रैन ।।
विरह पीर तुम जान लो,ओ रांझे की हीर ।
तडप रहा मैं नित यहां,बहे नयन से नीर ।।
सात जन्म तक चाहता,क्या तुम दोगी साथ ।
उसने ये सुन रख दिया,फिर हाथो में हाथ ।।
सजनी से होगा मिलन,कहे यही दो नैन ।
खुशियों को ओढ़े हुये,अब आएगी रैन ।।
✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
श्रोत्रिय निवास बयाना
+91 84 4008-4006
2 Comments
Waah bhaiya good
ReplyDeleteवाह
ReplyDeletePost a comment
Please Comment If You Like This Post.
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।