मनमनोरम छंद रावण उवाच : देख मेरी दृष्टि से तू जान पायेगा मुझे तब तारना है कुल मुझे वह वक्त आयेगा चला अब हूँ कुशल शासक,पुजारी ईश का हूँ मैं अभी भी राम भव से तारने वापस न आएंगे कभी भी आस लेकर जानकी जपती रही है नाम जिन… Read more »
मनमनोरम छंद रावण उवाच : देख मेरी दृष्टि से तू जान पायेगा मुझे तब तारना है कुल मुझे वह वक्त आयेगा चला अब हूँ कुशल शासक,पुजारी ईश का हूँ मैं अभी भी राम भव से तारने वापस न आएंगे कभी भी आस लेकर जानकी जपती रही है नाम जिन… Read more »
प्रमिताक्षरा छंद विधान : सगण,जगण,सगण,सगण=12 (१) पहचान ध्येय, पथ,जीवन,को उस ओर मोड़ फिर तू मन को तज लोभ,द्वेष अरु मोह सभी भव ताल पार उतरे तब ही (२) यह मोह मित्र सबको छलता फँस मोहजाल,जीवन जलता कर जाप नित्य मन मोहन का यह सार एक इस … Read more »
छंद : मदन/रूपमाला विधान : 24 मात्रा, 14,10 पर यति, आदि और अंत में वाचिक भार 21 कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत देख उसको दिल मचलता, प्रेम है या भोग बोध मुझको इसका नहीं, कौनसा यह रोग देख लेता जब तक न मैं, चित्त को कब चैन चाँ… Read more »
छप्पय छन्द विधान यह मिश्रित छन्द है। यह छह पंक्ति का छन्द है। यह दो रोला + एक उल्लाला छन्द का मिश्रण है। रोला छन्द ११/१३ की यति पर लिखा जाता है। उल्लाला छन्द १३/१३ की यति पर लिखा जाता है। छन्द अनुसार दो-दो पंक्तियों का समतुकान्त। … Read more »
दोहा• बृज देखो बृज बास को, अरु बृजवासिन रंग बृजरज की पावन छटा, देख जगत सब दंग कवित्त : 8,8,8,7 वर्णों की चार समतुकांत पँक्तियाँ बृज धाम कूँ निहार, जित प्रेम मनुहार बाँटों अपनौउ प्यार, चलो यार बृज में आये नाथन के नाथ, रखौ … Read more »
महाशृंगार छन्द का विधान १- यह चार पक्तियों का छन्द है, प्रत्येक पक्ति में कुल 16 मात्रायें हो ती हैं हर पक्ति का अन्त गुरु लघु से करना अनिवार्य , दूसरी ओर चौथी पक्ति में तुकान्त मिलान उत्तम पहली और तीसरी तथा दूसरी और चौथी पंक्ति तुक… Read more »
आन बान शान रख, और पहचान इक भारती का वीर रख, अडिग जुबान को काट डाल रार वाली, खरपतवार जड़ चूर कर डाल गिरि, जैसे अभिमान को दीमक लगी हो जित, उत भी नजर डाल देश से बाहर कर, देश द्रोही श्वान को देश की अखंडता के, लिये ये जरूरी यज… Read more »
घर बाहर का मुखिया नर हो और नारि घर भीतर जान दोनों ही घर के संचालक दोनों का ऊँचा है स्थान बात करे जब मुखिया पहला दूजा सुने चित्त ले चाव बात उचित अनुचित है जैसी वैसा ही वह देय सुझाव बिना राय करना मत दोनों चाहे … Read more »
गृहस्थ : छंद - आल्हा/वीर,बृज मिश्रित ------------------------- जय जय जय भगवती भवानी कृपा कलम पर रखियो मात आज पुनः लिख्यौ है आल्हा जामै चाहूँ तेरौ साथ महावीर बजरंगी बाला इष्टदेव मन ध्यान लगाय निज विचार गृ… Read more »
रक्ता छंद [Rakta Chhand ] विधान :- रगण जगण गुरु【212 121 2 】 कुल 7 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत ] (1) मात ज्ञान दीजिये दूर दोष कीजिये मंद हूँ विचार दो लेखनी सँवार दो (2) मात हंसवाहिनी आप ज्ञान दायिनी … Read more »
कुंडलियाँ Kundaliyan Chhand 【सोमवार】 देवो के वह देव है, भोले शंकर नाम ध्यान धरो नित नेम से, अंत मिले हरि धाम अंत मिले हरिधाम, पार भव के हो जाये मनचाहा सब होय, साथ सुख समृद्धि पाये कहे भक्त उत्कर्ष, ना… Read more »
कहमुकरी छंद कहमुकरी छंद विधान : प्रतिचरण 15 अथवा 16 - 16 मात्राऐं, क्रमशः दो दो चरण समतुकांत वह भविष्य का है निर्माता पथभ्रष्टी को पथ पे लाता कर्म मार्ग का वही निरीक्षक क्या सखि ईश्वर ? ना सखि शिक्षक … Read more »
महाभुजंगप्रयात [Mahabhujangprayat] विधान : महाभुजंगप्रयात छंद आठ यगण से है बना, बारह पर यति सोय । भुजंगप्रयात से दोगुना, सदा छंद यह होय ।। ------------------------------------- लगी है झरी धार पैनी परी हैं, लिये नीर आई… Read more »
उल्लाला छन्द उल्लाला छन्द विधान - उल्लाला छंद सममात्रिक छंद है, इस छंद के दो भेद होते है। प्रथम भेद :- इस के प्रत्येक चरण में १३ - १३ मात्रायें (कुल २६ मात्रायें) होती हैं। प्रत्येक चरण की ग्यारहवीं मात्रा लघु होती है । द्वितीय भेद :- इसके भी चार चरण होत… Read more »
हिंदी की जय बोलो हिंदी, भाषा बड़ी सुहानी है हिंदी गौरव हिन्द देश का, हिंदी हरि की वाणी है है मिठास हिंदी भाषा मे, पुरखो का यह मान रही वीरों का भुजबल थी ये ही, अपना स्वाभिमान रही मात भारती के ललाट पे, तेज लिये जो बिंदी है और… Read more »
मत्तगयंद सवैया : भगण×7+गुरु+गुरु सूरकुटी पर भीर भयी, कवि मित्र करें मिल कें कविताई । छन्दन गीतन प्रीत झरे, उर भीतर बेसुधि प्रीत जगाई । भाग बड़े जब सूरकृपा, चल सूरकुटी बृज आँगन पाई । देख छटा बृज पावन की,उर आज नवीन गयौ हरसाई । ✍… Read more »
मंदाक्रांता छंद -------------------- [ विधान : मगण,भगण,नगण,तगण,तगण,गुरु,गुरु] ____________________________ मर्यादा मारग तज,चले लोग वो चाल देखो । माया के, मोहवश उनके जो रहे हाल देखो । हैं वो निर्भीक,सभय नही,ईश से घाल देखो । होना है अंत,समय बढ़ा … Read more »
छंद : मंदाक्रांता -------------------- मंदाक्रांता छंद परिचय :- यह छंद वार्णिक छंद है, वार्णिक छंदो में मंदाक्रांता लोकप्रिय छंद रहा है। इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण भगण, नगण, तगण, तगण,गु,गु, के योग से 17 वर्ण होते हैं। जिसमे क्रमशः 10 एवं 7 वर्ण… Read more »
महाश्रृंगार छंद [Mahashringar chhand] विधान : यह सम मात्रिक छन्द है।इसके प्रत्येक चरण में 16 ,16 मात्राएँ होती है ।दूसरे व चौथे चरण में सम तुकान्त रहता है। चरणान्त दीर्घ लघु से। आदि में त्रिकल द्विकल(3,2) व अन्त में द्विकल त्रिकल(2,3) सुनो ! बृसभानु लली… Read more »
जनक सुता माँ जानकी,अरु दशरत सुत राम । श्री चरणों मे आपके,मेरा नमन प्रणाम ।। - उत्कर्ष अज्ञानी ठहरा प्रभो,नहीं तनिक भी ज्ञान । क्षमा करो मम भूल हे,पवन पुत्र हनुमान ।। - उत्कर्ष ज्ञान दायनी भगवती,रखो कलम का मान । तुरत संभालो काज म… Read more »
लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष श्रोत्रिय निवास, बया…
प्रोफ़ाइल देखेंउत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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