!! बचपन !! [ मत्तग्यन्द/मालती सवैया ] (प्रथम) बालक थे जब मौज रही,मन चाह रही वह पाय रहे थे । खेल लुका छिप खेल रहे,मनमीत नये हरषाय रहे थे । चोट नही तन पे मन पे,उस वक़्त खड़े मुस्काय रहे थे । रोक रहो कब कौन हमें,सब आपहि प्रीत लुटाय रहे थे । (द… Read more »
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