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उत्कर्ष छन्द : रोला, वर्षा

छन्द : रोला ----------------- लिये हरित परिधान,धरा पर  पावस आयी । शीतल चली  बयार,उष्णता   है   शरमायी । भरे  कूप अरु  कुंड,नीर सरिता  भर लायी । जन,जीवन,खुशहाल,ऋतु वर्षा मन भायी ।। - नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”    श्रोत्रिय निवास बयाना Http://NKUtkarsh.Blogspot.c… Read more »

कविता और चोरी

दोहा ----- लेख    भले  ही चोर लो,कला न पावें चोर लिखना मेरा कर्म है,समझ सके कब ढोर रोला ------ समझ सके कब ढोर,काम भूसा से रहता । कुछ गुण रहे विशेष,चोर चोरी तब करता । सुनो “सुमन उत्कर्ष”,हवा से ही पात हलें । चोरी सकें  न रोक ,छुपा   लो   लेख भले… Read more »

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