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बृज : brij

दोहा• बृज देखो बृज बास को, अरु बृजवासिन रंग बृजरज की पावन  छटा, देख जगत सब दंग कवित्त : 8,8,8,7 वर्णों की चार समतुकांत पँक्तियाँ बृज   धाम    कूँ निहार, जित  प्रेम   मनुहार बाँटों      अपनौउ  प्यार, चलो   यार  बृज में आये  नाथन  के   नाथ, रखौ … Read more »

संकल्प : मनहरण कवित्त/घनाक्षरी

आन बान  शान रख, और  पहचान   इक भारती   का वीर रख, अडिग  जुबान  को काट   डाल रार वाली, खरपतवार      जड़ चूर  कर  डाल गिरि, जैसे  अभिमान  को दीमक  लगी हो जित, उत भी  नजर डाल देश  से  बाहर   कर, देश द्रोही  श्वान  को देश  की  अखंडता के, लिये ये जरूरी यज… Read more »

गर्व से कहो हम ब्राह्मण हैं

जिंदगी के अंत तक,कष्ट के ज्वलन्त तक, रोम रोम मेरा परशुराम गीत गयेगा । विप्र अनुराग मेरा,विप्र मन राग मान, विप्र वंदना में मन,डूबता ही जायेगा । विप्र परिवार मेरा,विप्र व्यवहार मेरा, विप्र हूँ ये सोचकर,अरि घबरायेगा । जिंदगी,उत्कर्ष यह,विप्र कुल गौरव की, जिस दिन मा… Read more »

झूठ : मनहरण कवित

विधा : मनहरण कवित छंद झूठ बोल छल रहे,झूठ से ही चल रहे, झूठ की इस झूठ को,दिल से निकालिए । झूठे रिश्ते झूठा जग,झूठन ही यहाँ सग, झूठे इस प्रपंच में,न खुद को डालिए । भरी यहाँ मोह माया,संभल न मन पाया, भ्रम से निकाल अब,मन को संभालिए । तारना है खुद को तो नेक राह … Read more »

मनहरण कवित छंद /घनाक्षरी

शीर्षक : देशभक्त सारे जग को  बिसार, देते  तन मन वार करे भारती  के लाल, वो  कहाँ आराम है काटे दस  दस  शीश, मारे एक संग बीस नही डरते  वो  चाहे, कुछ  भी  अंजाम है  भूलकर  जाँत   पाँत, बस कहे  यह  बात अपनी माँ भारती ही, अल्हा और राम है माँ भारती के … Read more »

घनाक्षरी/ मनहरण कवित छंद

चल     रहे    जिस    पथ , मारग   है नीति   का   वो , आगे अभी बाकी सारा , आपका     ये      जीवन , कोण घडी जाने आवे , संकट   को   लेके साथ , मजबूत     कर    आज , अब     अपना       मन , हार    मत    देख     काम , लगा       रह     अविराम , कर     … Read more »

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