*अर्ज करता हूँ*
"तेरी बातों में जब मेरा ही जिक्र हो,
फिर कैसे ना मुझे तेरी फ़िक्र हो...
*एक और*
मोहब्बत से नफरत थी तुम्हे,ऐ !जिंदगी
फिर नफरतो में हमारा क्या काम......
प्यार से नफरते बनी,नफरतो से बने गम,
गम से बनी जिंदगी,जिंदगी से बने हम,
जब प्यार नही था,तो नफरते कहाँ से आई,
ऐ जिंदगी,या यह भी धोखा रहा तुम्हारा..
चाहतें हर बार वही नही होती,ऐ जिंदगी,
कुछ तो चाहतो का मौसम भी होता है
हमारी पसन्द कल भी वही थी,आज भी है....
मिले न मिले,इसमें मोहब्बत का कसूर क्या,
मुझसे उम्मीदें रखना तेरा बड़प्पन है,दोस्त,
खता तो हमसे हुई,जो दामन तेरा मांग बैठे...
ऐ ! जिंदगी,दूर जाना है,चली जाओ,
हमारा क्या हम तो बेजान है कबसे..
क्यों खफा हो हमसे तुम *ऐ ! जिंदगी*
इक तेरी चाहतो से ही तो मेरी जिंदगी जुडी है..
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*ऐ ! मोहब्बत*
बेवफा नही है तू,न ही वफ़ा करती है,
जिसको होती है,उसे सफा करती है,
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ऐ ! जिंदगी,अब हम जाते है तेरे शहर से,
मगर हमें भूलाना आसान नही होगा
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
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