मुक्तक : 2212 1222 212 122

वो   दूर   जा   रहे   तो,हम  दूर  हो  गये है ।
उनकी खुशी की खातिर मजबूर  हो गये है ।
है  बेवफा  जमाना  हम   जानते   नही   थे ।
कर   प्यार  बेवफा  से  मशहूर  हो  गए  है ।
(२)
कर प्रेम राधिका सा,मोहन     हमे     बनाना ।
हो वायदा  कभी गर,फिर   वायदा   निभाना ।
घर से हो दूर कितने,पर दिल से ना समझना ।
तुम दूरिया बना  के,हमसे    न    दूर   जाना ।
(३)
  वतन के मान से बढ़कर,नही निज मान ये यारो ।
जुबां से  कीमती कब है,हमारे   प्राण   ये  यारो ।
भले ये  शीश  कट जाये,झुका  कोई  नही पाये ।

बनो  ऐसे  सदा  ही  तुम,रहे  अभिमान ये यारो ।
(४)
बनो दीपक की तरहा तुम,जहाँ रोशन  सदा करना ।
नही   हो  बाद  अंधियारा,कदम ऐसे  यहाँ  रखना ।
बढ़े फिर प्रीत इस जग में,रहे  मन  मैल ना  बाकी ।

करो कोशिश यहां पर वो,नही तम से कभी डरना ।
(५)
तुम्हारी  देख कर  सूरत,गमो  को भूल  जाता   हूँ ।
तुम्हारी  याद  में अक्सर,सनम   आँसू   बहाता  हूँ ।
लगा  है  रोग  ये   कैसा,नही   खुद  पे  रहा  काबू ।
करूँ   जो   बन्द  आँखे,सामने तुमको ही पाता हूँ ।

✍🏻नवीन श्रोत्रिय"उत्कर्ष"
    श्रोत्रिय निवास बयाना
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