(1)
बजरंगी बाला सुनो,अर्ज हमारी आप ।
सदा साथ देना प्रभो,हरना मन संताप ।।
हरना मन संताप,गीत प्रभु के हम गायें ।
उर के मिटे विकार,पाप सारे मिट जायें ।
बने जहाँ के दीप,करें नित बाद उजाला ।
अर्ज करे उत्कर्ष,सुनो बजरंगी बाला ।।
(2)
चोरी करते लेख की,स्वयं नही लिख पाय ।
सच में वे नर हीन है,कुल को नाम डुबाय ।।
कुल को नाम डुबाय,दाब पे मान लगायो ।
मिली चन्द टिप्पणी,मित्र कुछ और न पायो ।
बांटे फिर फिर ज्ञान,बनाते उल्लू जोरी ।
कहे मित्र उत्कर्ष,सफलता हरती चोरी ।।
(3)
कान्हा तेरा नाम सुन,मन में नाचे मोर ।
तेरे सुमिरन मात्र से,होय सुहानी भोर ।।
होय सुहानी भोर,बाद सब मंगल होता ।
धरे नही जो ध्यान,मूर्ख अपना ही खोता ।
कहे भक्त उत्कर्ष,ध्यान धर जिसने जाना ।
तेरा ही वह हुआ,त्यागकर सबकुछ कान्हा ।।
(4)
रविवार को सूर्य का,करें आप सब जाप ।
तन मन दोनों स्वस्थ हो,मिटे साथ ही पाप ।।
मिटे साथ ही पाप,बुध्दि वैभव मिल जाता ।
ओज पराक्रम बढ़े,दिव्यता प्रभु से पाता ।
कहे भक्त उत्कर्ष,प्रार्थना रही आधार ।
सब वारो में बड़ा,मान ये दिवस रविवार ।।
(5)
तेरा था न है यहाँ,इतना रखना याद ।
रीते कर आवागमन,रोता क्यों फिर बाद ।।
रोता क्यों फिर बाद,मोह माया सब झूठी ।
पड़ो कृष्ण की शरण,हरित हो किस्मत ठूँठी ।
कहे भक्त उत्कर्ष,यहाँ कब कुछ था मेरा ।
मोहजाल यह साँच ,कहें हम मेरा तेरा ।।
(6)
जीवन का उद्देश्य तुम,तुम्ही आदि तुम अंत ।
ये समझे जो भी प्रभो,हो जाता निश्चंत ।।
हो जाता निश्चंत,दास प्रभु का कहलाता ।
भव से होता पार,बाद वह तुमको पाता ।
कहे भक्त उत्कर्ष,मोह माया है उलझन ।
छोड़ धरो हरि ध्यान,सुधारो अपना जीवन ।।
(7)
विपदा का मारा प्रभो,करना सदा सहाय ।
संकटमोचन आप ही,मंगल करण कहाय ।।
मंगल करण कहाय,वीर बजरंगी बाला ।
पवन देव के पुत्र मात अंजनी के लाला ।
कहे भक्त उत्कर्ष,विपत बड़ी मारो गदा ।
लगे कहीँ कब ध्यान,परी जबसे ये विपदा ।।
✍🏻नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
All Rights Reserved Under CP Act.
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।