(१)
तेज तपन,
बनी हूँ विरहन
जलता मन,
(२)
आखिरी आस
अब होगा मिलन
बुझेगी प्यास
(३)
फाल्गुनी रंग
चहुँ ओर गुलाबी
पीव न संग
(4)
रात अँधेरी
मेंरा चाँद ओझल
उसी को हेरी
(5)
निगाहें फेरी,
या प्रेम छल अब,
है कौन बैरी ?
(6)
बरसें नैन,
सुजान तुम कहाँ,
मिले न चैन,
(7)
खिलीं कलियाँ,
सुगन्धित वसुधा,
नव प्रभात,
(8)
नवल राग,
आया है मधुमास,
खेलेंगे फाग,
(9)
कहता चंग,
करें मन गुलाबी
पी प्रेम भंग,
(10)
तपता तन,
सजन सतरंगी,
रंग दो मन,
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
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