दोहा•
बृज देखो बृज बास को, अरु बृजवासिन रंग
बृजरज की पावन  छटा, देख जगत सब दंग

कवित्त : 8,8,8,7 वर्णों की चार समतुकांत
पँक्तियाँ

बृज   धाम    कूँ निहार, जित  प्रेम   मनुहार
बाँटों      अपनौउ  प्यार, चलो   यार  बृज में

आये  नाथन  के   नाथ, रखौ अपनौउ  हाथ
भयौ   जसुदा को लाल, गोपाल   या  रज में

तीन  लोकन  ते  न्यारी, रजधानी बृज प्यारी
जित  राधिका   संग में, खड़े  कृष्ण  कज में

गिरिराज   सौ   सुधाम, इत  एक  राधे नाम
भजें    नित   अविराम, देख   हूँ  अचरज में

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