उपजाति सवैया
विधान :
उपजाति सवैया क्रमशः दो सवैया का योग है , अथवा मिश्रित रूप है । जैसे इस सवैया में क्रमशः मत्तग्यन्द सवैया और सुंदरी सवैया का समावेश है ।
ताप परे नित तेज लग्यौ अब, फागुन ग्रीष्म ऋतू भर आईं
मेल मिलाप करें ऋतु दो, बचकेउ नवीन रहो तुम भाई
पवमान चले दिनमैउ तपी, अरु रातन में सरदी सरदाई
तन ताप गिरे अरु ताप चढ़े, गर वात लगे,तन कूँ दुखदाई
उपजाति सवैया |
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