कैसे तुझको कवि में कह दूँ
कैसे दूँ सम्मान रे
छंद अलंकार का मर्म न जाने
न जाने विधि विधान रे
कैसे तुझको कवि में कह दूँ
कैसे दूँ सम्मान रे
काव्य के तू गुण दोष न जाने
न काव्यशास्त्र का ज्ञान रे
शब्दों की तू महत्ता न जाने
न जाने तू संज्ञान रे
कैसे तुझको कवि में कह दूँ
कैसे दूँ सम्मान रे
हँसी ठिठोली करता डोले
तेरा मुक्त रीति परिधान रे
कलम से तू अनभिज्ञ और तू
लेखन से अनजान रे
कैसे तुझको कवि में कह दूँ
कैसे दूँ सम्मान रे
New Poetry : Utkarsh kavitawali |
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।