बेटियाँ - Betiyan [ तांटक छंद ]
पीले हाथ किये बाबुल ने,अपनी बेटी ब्याही है
अब तक तो कहलाई अपनी,अब वो हुई परायी है
नीर झलकता है पलको से,बेला करुणा की आयी
चली सासरे वह निज घर से,दुख की बदली है छायी
मात-पिता, बहिना अरु भाई,फूट - फूट कर रोते है
अपनी प्यारी लाडो से,दूर सभी जब होते है
ख़ुशी ख़ुशी सब रिश्ते जुड़ते,बुने प्रेम के धागों से
सदा ख़ुशी ही लेकर आई, बेटी अपने भागो से
नीर भरी अँखियों से बाबुल, कहते सुनो जमाई जी
मैंने मेरी दौलत सारी,तुमको है समराई जी
यही दिवाली यही दूज है,यही प्रेम की होली है
भूल चूक पर ध्यान न देना,मेरी लाडो भोली है
नही चाहिये इसको कुछ भी,थोड़ा प्यार जताना है
बेटी खुद कमला है होती,यही मुझे समझाना है
उत्कर्ष कहे सुनलो श्रोता तुम,बाद बड़े पछताओगे
बेटी का सम्मान सीख लो,तब आगे बढ़ से पाओगे
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
भरतपुर (राजस्थान)
+91 84 4008-4006
| Betiyan Tantak Chhand |



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