नारी: गजल [ Naari : Gazal ]

 बह्र : 212-212-212-212 
भूख उसको भले पहले'खाती नहीं
दुःख हों  लाख ही पर जताती नहीं

Bhookh  Usko Bhale Pehle  Khaati nahi
Dukh   Hon  Lakh   Hi   Per  Jatati nahi

नित्य  जल्दी जगे  काम  सारा करे
बाद  भी  वो  यहाँ प्यार पाती नहीं

Nitya  Jaldi  Jage  Kaam  Sara  Kare
Baad  Bhi Wo Yahan Pyar Paati nahi

घुट रही  ओट में  और रस्मों में' वो
लोग   कहते  उसे  लाज आती नहीं

Ghut  Rahi  Oat Me Aur Rasmon  Me Wo
Log   Kehte    Use    Laaz    Aati     Nahi

दीप  तुम  भी नहीं हो उजाले लिये
और  कहते  उसे तम मिटाती नहीं

Deep  Tum  Bhi Nahi Ho Ujale Liye
Aur  Kehte  Use  Tam  Mitati  Nahi

और चाहे न कुछ चाह  है प्यार की
कर  न पाये  कहें वो निभाती नहीं

Aur  Chahe na Kuchh Chaah Hai Pyar ki
Ker  na  paaye  Kahen  Wo Nibhati nahi

दायजे  की  चिता  में  जलाते  रहे
नारि  “उत्कर्ष” वो  दीपबाती नहीं

Dayje   Ki   Chita  Me  Jalate  Rahe
Naari  Utkarsh  Wo Deepbaati Nahi

नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
 श्रोत्रिय निवास बयाना
  +91 95 4989-9145
Naveen Shrotriya Utkarsh
Shrotriya Mansion Bayana
   +91 95 4989-9145
Utkarsh Kavitawali
Naari-Gazal

अन्य चुनिंदा रचनाएँ, कृपया इन्हें भी पढ़ें। 

1. Vivah Vidai Geet : विदाई गीत  2. महाशृंगार