नारी: गजल [ Naari : Gazal ]
बह्र : 212-212-212-212
भूख उसको भले पहले'खाती नहीं
दुःख हों लाख ही पर जताती नहीं
Bhookh Usko Bhale Pehle Khaati nahi
Dukh Hon Lakh Hi Per Jatati nahi
नित्य जल्दी जगे काम सारा करे
बाद भी वो यहाँ प्यार पाती नहीं
Nitya Jaldi Jage Kaam Sara Kare
Baad Bhi Wo Yahan Pyar Paati nahi
घुट रही ओट में और रस्मों में' वो
लोग कहते उसे लाज आती नहीं
Ghut Rahi Oat Me Aur Rasmon Me Wo
Log Kehte Use Laaz Aati Nahi
दीप तुम भी नहीं हो उजाले लिये
और कहते उसे तम मिटाती नहीं
Deep Tum Bhi Nahi Ho Ujale Liye
Aur Kehte Use Tam Mitati Nahi
और चाहे न कुछ चाह है प्यार की
कर न पाये कहें वो निभाती नहीं
Aur Chahe na Kuchh Chaah Hai Pyar ki
Ker na paaye Kahen Wo Nibhati nahi
दायजे की चिता में जलाते रहे
नारि “उत्कर्ष” वो दीपबाती नहीं
Dayje Ki Chita Me Jalate Rahe
Naari Utkarsh Wo Deepbaati Nahi
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Naari-Gazal |
4 Comments
sunder
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जी
हटाएंbahut sunder
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जी
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