विदाई गीत [ Vidai Geet ]

हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन  पी   के  संग  चली  है
पलकों  में  भर  कर के आंसू,
बेटी  पिता  से  गले  मिली  है


फूट - फूट के  बिलख रही वो-२
बाबुल  क्यों  ये सजा मिली है,
छोड़ चली क्यों घर आंगन कू,
बचपन की जहाँ याद बसी है,


हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन  पी   के  संग  चली  है
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन  पी   के  संग  चली  है ,


बाबुल  रोय  समझाय रह्यो है
बेटी ! जग  की  रीत  यही  है,
राखियो ख्याल तू लाडो मेरी,
माँ - बाबुल तेरे सबहि वही है


हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन  पी   के  संग  चली  है

नजर घुमा भइया  को  देखा
भइया काहे यह गाज गिरी है,
में  तो  तेरी  हूँ  प्यारी  बहना,


यह अब कितनी बात सही है-२

हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन  पी   के  संग  चली  है

भइया सुनकर बोल बहन के,

अंसुअन की बरसात करी है,
रोतो रोतो वह  भइया  बोलो
बहन विधि का विधान यही है,

बीत रही जो तेरे दिल पे बहना
"मेरा"  भी   कुछ  हाल  वही  है


कैसे बताऊँ तोहे कैसे बुझाऊँ
नियति की यह विकट घडी है,

हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन  पी   के  संग  चली   है


हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन  पी   के  संग  चली   है 
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✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
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Utkarsh Kavitawali
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