मत्तगयंद सवैया :
भगण×7+गुरु+गुरु
सूरकुटी पर भीर भयी, कवि मित्र करें मिल कें कविताई ।
छन्दन गीतन प्रीत झरे, उर भीतर बेसुधि प्रीत जगाई ।
भाग बड़े जब सूरकृपा, चल सूरकुटी बृज आँगन पाई ।
देख छटा बृज पावन की,उर आज नवीन गयौ हरसाई ।
✍नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
श्रोत्रिय निवास बयाना
Mattgyand savaiya : story mirror reward |
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।