Utkarsh Kundaliya कुंडलिया छंद कुंडलिया छंद Utkarsh Kundaliya कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिय… Read more »
Utkarsh Kundaliya कुंडलिया छंद कुंडलिया छंद Utkarsh Kundaliya कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिय… Read more »
लिए कंचन सी' काया वो,उतर आई नजारों में । करें वो बात बिन बोले,अकेले में इशारो में । बिना देखे कही पर भी,मिले नहिं चैन अब मुझको । गगन के चाँद जैसी वो,हसीं लगती हजारों मे । ===============≠=============== बसे हो इस कदर दिल में,भु… Read more »
उसका निखरा रूप था,नागिन सम थे बाल । घायल करती जा रही,चल मतवाली चाल ।। चन्द्र बदन कटि कामनी,अधर एकदम लाल । नयन कटारी संग ले,करने लगी हलाल ।। जबसे देखा है तुझे,पाया कहीं न चैन । प्रेम रोग ऐसा लगा,नित बरसत ये नैन ।। प्रीतम से होगा मिलन,आस भरे द… Read more »
हिंदी वाले हिन्द में,सब मिल रहते साथ | फिर हिंदी में क्यों नही,होती दिल की बात ||१|| देवनागरी मे लिखो,मन भीतर जो प्रीत | हिंदी में फिर गाइये,मधुर मिलन के गीत ||२|| हिन्द देश की है बनी,हिंदी ही पहचान | निज भाषा में बोल कर,रखो देश का मान ||३|… Read more »
शीर्षक : मेरा कृष्णा विधा : तांटक छंद ________________________________ पाप बढे जब भी धरती पर,तुमको सभी पुकारे है । रूप लिया गिरधर तब तुमने,आकर कष्ट उबारे है । कोइ कहे मन मोहन छलिया,काली कमली वारे है । जसुदा के लल्ला मतवारे, मेरे गिरधर प्यारे है । Read more »
शीर्षक : देशभक्त सारे जग को बिसार, देते तन मन वार करे भारती के लाल, वो कहाँ आराम है काटे दस दस शीश, मारे एक संग बीस नही डरते वो चाहे, कुछ भी अंजाम है भूलकर जाँत पाँत, बस कहे यह बात अपनी माँ भारती ही, अल्हा और राम है माँ भारती के … Read more »
प्रेम हृदय में धारिये,प्रेम रत्न यह ख़ास । जहाँ प्रेम का वास है,वही प्रभो का वास ।। ब्रह्मदेव के पुत्र है,ब्रह्म बना आधार । परशुराम सम तेज है,यह ब्राह्मण का सार ।। राजपूत राजा बने,मिला दिव्य जब ज्ञान । मैं ब्रह्मा का पुत्र हूँ,अब तो मुझको जान ।।… Read more »
छंद : मत्तग्यन्द सवैया _______________________________ पाप बढ़े जिससे वसुधा,प्रभु नित्य कँपे यह संकट टारो । मान मिले नहिं मात-पिता,मद मोह बसो सुत है मतबारो । गाय मरे अब नित्य यहाँ,यह मानवधर्म अधर्म सम्हारो । आप गये सगते कह कें,फिर केशव आकर सृष्ट… Read more »
(1) फिरो क्यों फेसबुक पर ढूँढते तुम प्यार को यारो । मिले सच्चा यहाँ फिर कब,सुनो सब इश्क के मारो । रही ये फ़ेसबुक जरिया,जुडो इक दूसरे से तुम । मगर मतलब ज़माना है,इसे भी जान लो प्यारो ।। (2) जमाना है बड़ा जालिम,समझ दिल को न पाता है । रखे यह स्वार्थवश रि… Read more »
छंद : मदिरा सवैया [भगण×7+1] रस : श्रृंगार चरण : 4 यति : 10/12 ------------------------------------------- नैन मिले जबसे उनसे,वह ही अँखियों पर छाय रही चैन नही दिन में हमकूँ, रजनी भर याद सताय रही प्रेम हुआ हमको सुनलो,मन अग्नि यही समझा… Read more »
*वसुमति छंद* [तगण,सगण] ------------------- तू ही जगत में, तू ही भगत में, है वास सब में, हूँ बाद जब मैं, ----------------- ------------------- आधार तुम ही, हो सार तुम ही, ये पार तुम ही, … Read more »
चल रहे जिस पथ , मारग है नीति का वो , आगे अभी बाकी सारा , आपका ये जीवन , कोण घडी जाने आवे , संकट को लेके साथ , मजबूत कर आज , अब अपना मन , हार मत देख काम , लगा रह अविराम , कर … Read more »
छन्द : मंजुभाषिणी [सगण+जगण+सगण+जगण+गुरु] चल आ गये हम कहाँ,नही पता अब राह केशव हमे,तुही बता हम नेह के सुमन है,रहे खिले उतरे भवांबुधि परे,कृपा मिले __________ नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष" श्रोत्रिय निवास बयाना,राज• manju… Read more »
मदिरा सवैया [madira Saviaya] स्नान करें मिल साथ सभी,जल निर्मल ये तटनी तट है बाँट ख़ुशी खुशहाल रहे,सब व्यर्थ बड़ा यह झंझट है वक्त रहा कब कौन सगा,तब वक्त मिला यह उद्भट है जीवन है जितना सबका,रह साथ जिये उनको रट है नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"… Read more »
नमन करूँ मैं माँ शारद को , करना माते सदा सहाय । लिखूँ ख्वाब में हाथ कलम ले , जो मेरे मन को हर्षाय । -------------------------------------------- सरकारी मैं करूँ नौकरी , बन अफसर जो ऑफिस जाय । लटके है जो काम अभी… Read more »
लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष श्रोत्रिय निवास, बया…
प्रोफ़ाइल देखेंउत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
अधिक जाने.... →
Follow Us
Stay updated via social channels-
-
-
-
-